Saturday, July 16, 2011

सुबह


क्षितीज के किनारेपे  
नयासा इक सवेरा 
मिठीमिठी नींद मे
कुछ करवटे चाहिये !!

फुलपत्ते खिले है 
नयीनयीसी सुबह 
ओस कि बुन्दोमे 
तन भीगना चाहिये !!

पाखपाख गिलागिला
भिगाभागासा ये पंछी
हरे हरेसे जंगलमे
सूरकी लकीर चाहिये !!

ऐसे बरसो ओ मेघा
जाग जाये अस्तित्व
उदास मन की शाखपे
नये पत्ते खिलने चाहिये !! 

 - भक्ती आजगावकर 


1 comment:

  1. ऐसी सुबह मेरी जीवन मै कब आयेगी ?

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