बूंद
दवबिंदु सा जीवन सारा
युही बह जाना है
बस एक बार मगर
कमल दल पर नहाना है
बैठू मैं जरा गौर से
और लगु मोती जैसा
कितने पल का है जीवन
ये फिर क्यों गिनना है
नीर बनके बहु
आस ये मन में अभी
तृषार्त की प्यास को
एक बूंद से बुझाना है
बारिश की बूंद हो जाऊ
या आंसू की इक बूंद
दया रहे मन में भरी
फिर गगन को छुना है
- भक्ती आजगावकर
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