Sunday, July 17, 2011

बूंद


दवबिंदु सा जीवन सारा 
युही बह जाना है 
बस एक बार मगर 
कमल दल पर नहाना है 

बैठू मैं जरा गौर से 
और लगु मोती जैसा 
कितने पल का है जीवन 
ये फिर क्यों गिनना है 

नीर बनके बहु 
आस ये मन में अभी 
तृषार्त की प्यास को 
एक बूंद से बुझाना है 

बारिश की बूंद हो जाऊ 
या आंसू की इक बूंद 
दया रहे मन में भरी 
फिर गगन को छुना है 

- भक्ती आजगावकर



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