अक्सर यही होता है ..
पता नही चलता कहां जाना है.. कब जाना है
और जिन्दगी गुजर जाती है ...!!
बिलकुल उन लहरों की तरह ..
न कोई स्वतंत्र अस्तित्व होता है उनका...
न कोई आदि न अंत ..!!
बस आती है और बहा ले जाती है ..
हम देखते रहते है और समझ नाही पाते,
के कब हम उनमे समा गए ..!!
बस हाथ आती है..
कुछ स्वर्णमयी रेत और कुछ जलबिंदु
वो भी हाथ से फिसलते हुए ..
कभी कभार कोई सीपी भी,
और मन में आशा सी जगती है ...
के शायद कोई मोती हो ..!!
बस बहता है.. बहता जाता है जीवन
और पता नही चलता कब ..
अपनी सीपी बंद करने की घड़ी आ गयी ..
कब मिट जाना होगा हमें ... !!
सचमुच किसी को खबर नही होती
कोई सीपी अपने आप में मिटकर
इस अथांग सागर में कब गुम हुई .. !!
बस आसपास कुछ बुन्दोंमे हलचल सी होती है ...
पर पल दो पल में ही वो स्वयं में घुलकर
बना लेती है खुद को इतना विशाल ..
के कोई कमी न रहे...
बस फिर नयी बुँदे नयी लहर
और जीवन बहता रहता है .. !!!
- भक्ति आजगावकर
bhakti, very nice.its reality of every humen being. keep writing
ReplyDeleteआवडली
ReplyDeleteधन्यवाद अभिषेक & "Me n myself"
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