लहरे देखे लोग बोले, कितना प्यारा सागर ..
और किनारे खडे हुए, साथ मे लेके गागर...!!!
सागर पर मन मे दुखी, देख लोगो की आस ..
नमकीनसे इस पानीसे, कैसे बुझाये प्यास ...!!!
गागर रह गयी खाली, और लौट गए लोग ..
वही लहरे वही किनारा.. वही जनम के भोग ...!!!
तबसे मनमे बात लिये सागर है अकेला ..
चांदनी की रात है पर दिल मे नही उजाला ...!!!
जाने कहा से आया जोगी बात यही समझाई
जन्मों के इस बंधनकी लडी नयी सुलझाई ...!!!
क्यों ये अकेलापन, किस कारन ये तनहाई ..
दुखो की गंगा बहते बहते तुम्ही में समायी ...!!!
दुःख कोई बड़ा किसी का.. कही किसीका महीन ..
जगके आसू पीकर सागर हुआ नमकीन ...!!!
ह्रदयपीड की किरणों से दुःख की भाप बने ..
खारेपन का निशान नहीं... बस बादल घने ...!!!
कारे कारे बादल यू जब छु जाये आसमान ..
सौंधी खुशबू गीली बूंदों में भीगे ये जहाँन ...!!!
उसी जमीनपे खडे है लहलहाते ये धान ..
इन्ही मीठे फलोंको पाकर तृप्त जग के प्राण ...!!!
लहराता खुश हुआ सागर मन ही मन मे ..
वो जोगी आन बसा है मेरे इन नैंनोंमे ...!!!
ओ जोगी तेरे एहसान, तू बता तेरा क्या नाता ..
बोला जोगी.. दू:ख बनके मैं तुझमे ही मिल जाता ...!!!
आदिम कालसे तेरी लहरे गाये मेरे गान ..
जुदा कहा मै तुमसे, तुम ही मेरी पहचान ...!!!
तबसे लेके आज तक इन दोनों का है नाता..
जोगीकी आहट पे सागर नैनोसे छलकता ..!!!
- भक्ती आजगावकर
धन्यु अभिषेक ... :)